सुबह मशीन बन
पेट की खातिर
ईंधन जुटाता हूँ
रात कविता करता हूँ
इंसान हो जाता हूँ
जैसे तन के लिए रोटी सुविधा हैं
मन के लिए कविता हैं
Author: Shashiprakash Saini