रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये,
धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये.
कहता है कौन नाला-ए-बुलबुल को बे-असर,
परदे में गुल कि लाख जिगर चाक हो गये.
करने गये थे उससे तग़ाफ़ुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गये.
इस रंग से उठाई कल उसने असद की लाश,
दुश्मन भी जिसको देखके ग़मनाक हो गये.
Autore: Mirza Asadullah Khan Ghalib